स्वतंत्रता

स्वतंत्रता का तात्पर्य किसी व्यक्ति की बिना किसी के हस्तक्षेप के अपनी इच्छा के अनुसार जीवन जीने की क्षमता से है।

जब बच्चे बड़े हो जाते हैं, तो माता-पिता को उन्हें अपनी इच्छानुसार जीवन जीने की थोड़ी आज़ादी देनी होगी। यह पालन-पोषण की यात्रा का एक आवश्यक कदम है , जो बच्चों को सीखने और बढ़ने में मदद करता है। अपने बच्चों को पर्याप्त स्वतंत्रता देने से उन्हें स्वतंत्र बनने और सही और गलत के बीच अंतर करने में मदद मिलती है। साथ ही, आपको उन्हें कोई भी गलत निर्णय लेने या गलत रास्ते पर जाने से बचाने के लिए कुछ प्रतिबंध भी लगाने चाहिए।



किशोरों को अपनी राय, विचार और भावनाओं को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने की अनुमति दी जानी चाहिए। उन्हें प्रभावी निर्णय लेना सीखना चाहिए जैसे कि वे कौन सा पाठ्यक्रम चुनना चाहते हैं क्योंकि वे जो भी विकल्प चुनेंगे वह भविष्य में उन पर प्रभाव डालेगा। यदि चीजें गलत होती हैं, तो उन्हें अपनी गलतियों को स्वीकार करने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि वे इससे एक मूल्यवान सबक सीखेंगे। यह उन्हें जिम्मेदार वयस्क बनाकर उनके व्यक्तित्व को आकार देने में मदद करता है। हालाँकि, बहुत अधिक स्वतंत्रता देने से उनके जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है क्योंकि संभावना है कि व्यक्ति इसका दुरुपयोग करेंगे। उदाहरण के लिए, सोशल नेटवर्किंग साइटों का अत्यधिक उपयोग उनके शैक्षणिक प्रदर्शन और मानसिक कल्याण को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। इसलिए, माता-पिता को अपने बच्चों को कुछ स्वतंत्रता का प्रयोग करने की अनुमति देनी चाहिए जिससे उनके व्यक्तिगत विकास में सुधार होगा। संकट के समय माता-पिता को भी उनके लिए मार्गदर्शन के स्रोत के रूप में कार्य करना चाहिए।

आपको अपने किशोरों को कितनी आज़ादी देनी चाहिए?

उचित मात्रा में स्वतंत्रता देने से आपके बच्चे को किशोरावस्था के लिए तैयार करने में मदद मिलती है। हालाँकि माता-पिता के लिए यह भ्रमित होना आम बात है कि उन्हें अपने बच्चों को कितनी आज़ादी देनी चाहिए, इसका उत्तर हर व्यक्ति में अलग-अलग होता है। आपके बच्चे की उम्र क्या है, वह कितना परिपक्व है, उन्हें परिवार का कितना समर्थन प्राप्त है, उनके पिछले अनुभव क्या हैं, वे किसी स्थिति में कितनी जिम्मेदारी से कार्य करते हैं और अन्य। कई बार बच्चे वास्तविक लोगों की पहचान करने में अच्छे होते हैं या पिछले दुखों के कारण किसी विशिष्ट स्थिति को अच्छी तरह से संभालने में सक्षम नहीं होते हैं, ऐसी स्थिति में, उन्हें अपने माता-पिता के निरंतर मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है।

उम्र का ध्यान रखें:

केवल उन्हीं चीज़ों की अनुमति दें जो आपके बच्चे की उम्र के अनुसार उपयुक्त हों। अगर आपके बच्चे अभी 16 साल के हैं, तो उन्हें देर रात तक रुकने या बिना लाइसेंस के कार चलाने की अनुमति न दें। उनसे कहें कि कुछ विशेषाधिकारों का लाभ उठाने के लिए कुछ और वर्षों तक प्रतीक्षा करें।

स्पष्ट सीमाएँ निर्धारित करें:

जब बच्चे किसी चीज़ के लिए अनुमति माँगते हैं, तो उन्हें अनुमति देने से पहले स्पष्ट नियम और नियम का उल्लंघन करने के परिणाम निर्धारित करें। इससे उन्हें जिम्मेदारी से कार्य करने में मदद मिलेगी। जब वे बाहर जाएं तो वापस आने का समय तय कर लें और अपने दोस्तों के साथ बिताए जाने वाले समय को सीमित कर दें। साथ ही, अध्ययन के समय और अन्य गतिविधियों के बारे में स्पष्ट नियम रखें।

नियम तोड़ने पर परिणाम लागू करें:

जब आपका बच्चा कोई नियम या सीमा तोड़ता है तो सुनिश्चित करें कि आप उचित कार्रवाई करें। यदि आप इस समय कार्रवाई नहीं करेंगे तो वे बार-बार गलतियाँ दोहराएँगे। यदि आवश्यक हो तो आप उन्हें अतिरिक्त कार्य सौंप सकते हैं या उनकी बाहरी गतिविधियों को सीमित कर सकते हैं।

उनकी आज़ादी को ज़िम्मेदारियों से जोड़ें:

अपने बच्चों को अधिक जवाबदेह बनाने के लिए उनकी आज़ादी को ज़िम्मेदारियों से जोड़ें। उन्हें घरेलू काम करने दें, बिल चुकाएं और किराने का सामान लाएं। इससे उन्हें जिम्मेदार विकल्प चुनने में भी मदद मिलेगी।

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बच्चे को खुद लेने दें अपने निर्णय

जरूरी है बच्चों पर भरोसा

मनोवैज्ञानिकों की राय में भी बड़ों को एक उम्र के बाद बच्चों पर विश्वास करना चाहिए। कुछ बातों का निर्णय उन पर छोड़ देना चाहिए। 8-9 साल की उम्र वह होती है जब बच्चा खुद भी अपने बारे में जानने लगता है। वह अपनी दिशा तय करना चाहता है कि उसे क्या पसंद है-उसे क्या सीखना है। हो सकता है कि इस प्रक्रिया में कई बार वह गलत निर्णय भी ले। पर मनोवैज्ञानिक कहते है कि इस दौर में मां-बाप को बच्चों पर अपनी पसंद थोपनी नहीं चाहिए। बल्कि उसे निर्णय लेने में मदद करनी चाहिए। ऐसे में उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा। डा. मोंटी का मानना है चूंकि नौकरीपेशा मां-बाप बहुत से निर्णय अपने बच्चों पर छोड़ देते है- स्कूल से लौटने के बाद उन्हे घर में क्या पहनना है, कितनी देर खेलना है, कब टीवी देखना है इसीलिए उनके बच्चे और के मुकाबले ज्यादा आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी होते है।

चुनाव की स्वतंत्रता

मनोवैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने का एक तरीका है कि उनकी बात को भी ध्यान से सुना जाए। आमतौर पर परिवारों में देखा गया है कि बच्चों पर बड़े केवल अपना निर्णय लादते है- वे ये जानने की कोशिश ही नहीं करते कि उनका बच्चा इस निर्णय को स्वीकारेगा या नहीं। अमूमन यह बात कैरियर को लेकर होती है। बच्चे को आगे क्या करना है इसका निर्णय अभिभावक करते है। जबकि डा. मोंटी मानती है कि बारहवीं के बाद बच्चे इतने मैच्योर होते है कि वे अपना कैरियर खुद चुन सकते है। हां, उन्हे सिर्फ चाहिए होता है गाइडेस और इमोशनल सपोर्ट। अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने बच्चों को ये बताएं कि किस कोर्स में आगे क्या संभावनाएं है, कौन या कोर्स जॉब ओरिएंटेड है, किसे करना फायदेमंद होगा, लेकिन निर्णय का अधिकार बच्चे को दें। जब वह अपनी पसंद की पढ़ाई करेगा तो बेहतर नतीजा मिलेगा।

विविध क्षमताओं का विकास

हर बच्चे में बहुत सी क्षमताएं होती है और ये क्षमताएं सबसे पहले पेरेट्स को ही नजर आती है, यह अलग बात है कि अधिकतर माता-पिता अपनी व्यस्तता और पूर्वाग्रहों के चलते इन को नजरअंदाज कर देते है। अगर आपका बच्चा ड्राइंग में रुचि दिखाता है या वह एथलीट बनना चाहता है तो उसे हतोत्साहित न करे। बहुत संभव है कि वह भविष्य में एक अच्छा चित्रकार या एथलीट बने और अगर ऐसा नहीं भी होता है तब भी उसका अपने आप पर भरोसा बढ़ेगा और वह जीवन के और क्षेत्रों में भी अच्छा कर पाएगा।

बड़े बनें आदर्श

डॉक्टर्स का कहना है कि बच्चों पर इस बात का भी प्रभाव पड़ता है कि घर के बड़े अपने अपने निर्णय लेने में कितने सक्षम है? अगर बच्चा पाता है कि उसकी मां हर काम पिता से पूछकर करती है तो उसमें भी अपना निर्णय लेने का आत्मविश्वास नहीं आएगा। अगर आप चाहते है कि आपके बच्चे आत्मविश्वासी और आत्मनिर्भर बनें तो यह जरूरी है कि इस तरह का उदाहरण पहले अभिभावक घर में प्रस्तुत करे।